दुनिया के इतिहास में फ़िर कभी ये दोहराई न हो।
इक माँ के दो बेटे, एक भाई का कोई सगा भाई न हो।
सूनी ही रखना गोद उस माँ की जिसकी दोनों आँखें बराबर न हों।
किसी एक से ज़्यादा प्यार या किसी एक बेटे से माँ को डर न हो।
फिर उनमें से कोई एक भारत माँ का वीर तो नहीं?
बाप जैसे भाई ने उसी की पीठ में मारा तीर तो नहीं।
कब जाने दोखा दे दे इतना कोई क़रीब न हो।
और छोटे भाई का हक़ खा ले इतना कोई ग़रीब न हो।
गरीबी थी सुदामा को भी पर मांग मांग कर चावल कृष्ण को खिलाये।
पर ऐसी गरीबी न हो कि लाख कमा कर भी भाई का खाये।
ऐसे दुखदायियो की क़यामत में भी सुनवाई न हो।
इक माँ के दो बेटे, एक भाई का कोई सगा भाई न हो।
इक माँ के दो बेटे, एक भाई का कोई सगा भाई न हो।
सूनी ही रखना गोद उस माँ की जिसकी दोनों आँखें बराबर न हों।
किसी एक से ज़्यादा प्यार या किसी एक बेटे से माँ को डर न हो।
फिर उनमें से कोई एक भारत माँ का वीर तो नहीं?
बाप जैसे भाई ने उसी की पीठ में मारा तीर तो नहीं।
कब जाने दोखा दे दे इतना कोई क़रीब न हो।
और छोटे भाई का हक़ खा ले इतना कोई ग़रीब न हो।
गरीबी थी सुदामा को भी पर मांग मांग कर चावल कृष्ण को खिलाये।
पर ऐसी गरीबी न हो कि लाख कमा कर भी भाई का खाये।
ऐसे दुखदायियो की क़यामत में भी सुनवाई न हो।
इक माँ के दो बेटे, एक भाई का कोई सगा भाई न हो।
- सुनील शर्मा
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